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Showing posts from April, 2014

आवारा

रात आई तो वो जिनके घर थे, वो घर को गये, सो गये रात आई तो हम जैसे आवारा फिर निकले, राहों में और खो गये इस गली, उस गली, इस नगर, उस नगर जाएँ भी तो कहाँ, जाना चाहें अगर सो गयीं हैं सारी मंज़िलें, सो गया है रास्ता_____"जावेद अख़्तर"

महफिल

आज शहर की दिवारें सुनशान थी। क्योंकि वो महफिल में तेरी आवाज सूनने को बेताब थी।।