Skip to main content

Posts

Showing posts from 2015

ख्वाहिशें

       वो कुछ ख्वाहिशों की परछाई थी जो ढलगयी। बाकी सब दबती जा रही है तर-बतर यादों की परतों के नीचे।

Poem

        इतनी मिलती है मेरी कविताओं से तेरी शक्ल,          लोग मुझे तेरा आशिक समझते होंगे।

सहज

लिखता हूँ पर अभिव्यक्त नहीं करता । अनुशासीत हूँ पर अनुभव नहीं करता ।।

माँ

                 मैं ना किस्सा हूँ, ना कहानी हूँ,                  बस माँ,  मैं तेरा हिस्सा हूँ ।। :)

sunrise

रात भर से उसके ढलने का इन्तजार था। वो निकला और फिर से सुबह हो गई।

आवारा

यहां-वहां... हर रोज चमकदार मिलते हैं उस मयखाने में भी तुम्हारे दिल के हकदार मिलते हैं।

छोङ गये

बस उनकी यादों में -वो माँऐ सारी रात पन्ने पलटती रही किताबों के जो छोङ गये वो। :( #Peshawar school attack :(