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Showing posts from December, 2015

ख्वाहिशें

       वो कुछ ख्वाहिशों की परछाई थी जो ढलगयी। बाकी सब दबती जा रही है तर-बतर यादों की परतों के नीचे।

Poem

        इतनी मिलती है मेरी कविताओं से तेरी शक्ल,          लोग मुझे तेरा आशिक समझते होंगे।