Skip to main content

Posts

Showing posts from 2014

सर्द लहरें

 इन बहती सर्द हवाओं की लहरों में-  गिरते पतों का सरसराहट सा शोर है ओर  हिलती टहनियों की चरमर-चरमर सी आवाज हैं  बाकी सब धुमिल होती यादों का सनाटा हैं।

Shadow

                           उस परछाई को रोका तो था पर          वह ये कहके निकल गई कि हम वक्त के पाबंद है।      

सुबह

आज की ‘ सुबह ’ दिखी थी सफेद लिबास में , शाम होते - होते , उसे देखा धुंधले मिजाज में।

बस इसी तरह ....

नयें लोग पुराना शहर नया घर पुरानी चौघट    नयी महफिल पुराने शब्द नये गानें पुरानी गजलें नयी शाम पुरानी यादें    कुछ नया नया सा   कुछ पुराना नया सा    नया नजरिया अन्दाज पुराना    बस इसी तरह उगल रही है आग सुलग रहा है शहर पिगल रही है सङके सिमट रही है रातें धूमिल हो रही है यादें कट रहें है दिन बस इसी तरह अक्सर लोग बिखर जाते है बारिश की बून्दों की तरह महफिल के लब्जों की तरह   बस इसी तरह चलता रहा इस नगर उस डगर हर महफिल सूनता रहा सुनाता रहा उसे ढूढता रहा ...   बस इसी तरह अनजान राहों पर नादान परिन्दों की तरह बस इसी तरह

नया घर पुरानी चौघट

नयें लोग पुराना शहर... नया घर पुरानी चौघट... नयी महफिल पुराने शब्द... नये गानें पुरानी गजलें... नयी शाम पुरानी यादें... कुछ नया नया सा .... कुछ पुराना नया सा ... नया नजरिया अन्दाज पुराना बस इसी तरह .... बस इसी तरह ....

परिन्दे

हूसन-ए-परिन्दे यू हीं चले जाते हैं हम उनके आने के आघोश में खो जाते है।

आवारा

रात आई तो वो जिनके घर थे, वो घर को गये, सो गये रात आई तो हम जैसे आवारा फिर निकले, राहों में और खो गये इस गली, उस गली, इस नगर, उस नगर जाएँ भी तो कहाँ, जाना चाहें अगर सो गयीं हैं सारी मंज़िलें, सो गया है रास्ता_____"जावेद अख़्तर"

महफिल

आज शहर की दिवारें सुनशान थी। क्योंकि वो महफिल में तेरी आवाज सूनने को बेताब थी।।