नयें लोग पुराना शहर नया घर पुरानी चौघट नयी महफिल पुराने शब्द नये गानें पुरानी गजलें नयी शाम पुरानी यादें कुछ नया नया सा कुछ पुराना नया सा नया नजरिया अन्दाज पुराना बस इसी तरह उगल रही है आग सुलग रहा है शहर पिगल रही है सङके सिमट रही है रातें धूमिल हो रही है यादें कट रहें है दिन बस इसी तरह अक्सर लोग बिखर जाते है बारिश की बून्दों की तरह महफिल के लब्जों की तरह बस इसी तरह चलता रहा इस नगर उस डगर हर महफिल सूनता रहा सुनाता रहा उसे ढूढता रहा ... बस इसी तरह अनजान राहों पर नादान परिन्दों की तरह बस इसी तरह
नयें लोग पुराना शहर... नया घर पुरानी चौघट... नयी महफिल पुराने शब्द... नये गानें पुरानी गजलें... नयी शाम पुरानी यादें... कुछ नया नया सा .... कुछ पुराना नया सा ... नया नजरिया अन्दाज पुराना बस इसी तरह .... बस इसी तरह ....
रात आई तो वो जिनके घर थे, वो घर को गये, सो गये रात आई तो हम जैसे आवारा फिर निकले, राहों में और खो गये इस गली, उस गली, इस नगर, उस नगर जाएँ भी तो कहाँ, जाना चाहें अगर सो गयीं हैं सारी मंज़िलें, सो गया है रास्ता_____"जावेद अख़्तर"