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सर्द लहरें

 इन बहती सर्द हवाओं की लहरों में-
 गिरते पतों का सरसराहट सा शोर है ओर
 हिलती टहनियों की चरमर-चरमर सी आवाज हैं
 बाकी सब धुमिल होती यादों का सनाटा हैं।

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लाशें ओर हड्डीया

एशिया से लेकर अमेरिका तक घृणा की आग फैली नहीं फैलायी गई हैं, शरहदे बनी नही बनवायी गई है मुल्कों ने लड़ाई करी नही कराई गयी है दीवारें भी बनी नही बनवायी जा रही है आग फेली नही फैलाई गयी है मध्य एशिया, यमन, सिरिया से लेकर लैटिन अमेरिका तक इसी आग में इंसानों को मारा और जलाया जा रहा है। सीरिया के अल्लेपो से लेकर श्रीलंका के केन्डी तक चीन के शिंगजियांग से लेकर म्यांमार के रेखायन तक । इराक के बग़दाद से लेकर ईरान के तेहरान तक पाकिस्तान के बलूचिस्तान से लेकर हिन्दुस्तान के कश्मीर तक फिलिस्तीन गाज़ा से लेकर अफगानिस्तान के काबुल तक। यमन, नाइजीरिया, पोंगयांग से वियतनाम तक यहा पर बिखरी पड़ी है लाखों इंसानी लाशें ओर हड्डीया। इन पर रसायनो और मिसाइलो से हमले हूए नही थे करवाये गए थे बच्चे मरे नही थे मरवाये गए थे उनके घर जले नही थे जलवाये गए थे शरणार्थी बने नही थे बनाये गए थे हूकुमतों के फरमान है कहीं पर अमेरिका छोड़ने का तो कहीं पर पाकिस्तान चले जाने का कही पर पङोसी मुल्कों की सरहदों पर दिवारे बनाने का। इंसानो को मरने और मारने की तरकीबे रची जा रही है यह घृणा की आग फैली ...

मुलाकात

दोंनो जयपुर लिटरेचर फेस्ट मे मिले थे  मुगल टैंट में दोनों कि मुलाकात जावेद अख़्तर को सुनते वक्त होती है, "ये वक़्त क्या है? ये क्या है आख़िर  कि जो मुसलसल गुज़र रहा है " दोनों एक साथ कविता वाली दरिया मे गोता लग रहे होते हैं  तबी एक बहुत खूबसूरत अन्तरे पर झूम उठते हैं "कभी-कभी मैं ये सोचता हूँ कि चलती गाड़ी से पेड़ देखो तो ऐसा लगता है दूसरी सम्त जा रहे हैं  मगर हक़ीक़त में पेड़ अपनी जगह खड़े हैं " लड़का  कितना साइंटिफिक लिखा है, लड़की टोकते हूए बोलती है है, डोनट बी  साइंटिफिक,  एंजॉय योर इमोशन, लडका, नो , इट इस् थियोरी ऑफ़ रैलिटीवीटी। लड़की जोर से हसते हुए, अब सुनों "ये वक़्त साकित हो और हम हीं गुज़र रहे हों " कितना खूबसूरत है ना, फिर दोनों जावेद अख़्तर को कम और एक दुसरे को ज्यादा सुनने लगते है।

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